सिमरन ने चौंक कर पीछे देखा — गोमती खड़ी थी, पर इस बार उसकी आंखों में डर नहीं, बल्कि साज़िश थी।
"अब तुमने बहुत कुछ जान लिया है… जितना तुम्हारी माँ ने भी नहीं जाना था।"
सिमरन ने पूछा, "तुम सब जानती थीं, है ना?"
गोमती मुस्कुराई।
"मैंने ही तुम्हारी माँ को बुलाया था रामपुरा वापस… लेकिन उसने वादा तोड़ दिया। सतीश के शव को नष्ट करने की बजाय उसने कुएं में डाल दिया…"
"और जब वो सब कुछ खोलने ही वाली थी, तब…?"
"तब मैंने उसे रास्ते से हटा दिया।"
सन्नाटा।
सिमरन जैसे पत्थर की हो गई।
"तू उसकी बेटी है… और अब तू भी वही कर रही है।"
गोमती ने जेब से एक पुराना पिस्तौल निकाला।
"अब एक और राज़ दफ़न होगा — तेरा।"
लेकिन तभी दरवाज़े पर पुलिस खड़ी थ
ACP आरव मेहरा — जो सिमरन ने कल ही फुटेज भेजकर बुलाया था।
"गोमती देवी, आपको हत्या, सबूत मिटाने और झूठी गवाही देने के जुर्म में गिरफ्तार किया जाता है।"
गोमती चीखी, "ये सब उस डायरी की वजह से हुआ… मैंने सबको बचाने की कोशिश की थी!"
"किसी को मारना कभी बचाव नहीं होता…"
आरव ने उसे ले जाते हुए कहा।
🔚 एपिलॉग – सच का सामना
हवेली सील कर दी गई।
सतीश को न्याय मिला।
सिमरन की मां निर्दोष साबित हुईं।
सिमरन ने "आख़िरी कॉल" नाम से एक किताब लिखी —
जिसका पहला वाक्य था:
"कभी-कभी सच इतने गहरे दबे होते हैं कि उन्हें बाहर लाने के लिए किसी मरे हुए की कॉल चाहिए होती है…"
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